डॉ प्रदीप श्याम रंजन
काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट
वर्ल्ड हेल्थ ऑरगेनाइजेशन एवं वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेन्टल हेल्थ द्वारा प्रतिवर्ष 10 अक्टूबर को मेन्टल हेल्थ डे मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1992 में की गई। इसके साथ ही जागरूकता लाने के लिए मानसिक स्वास्थ्य सप्ताह भी मनाया जाने लगा।
मनोचिकित्सकों का मानना है कि वैज्ञानिक उपलब्धियों ने हमारे जीवन को पूरी तरह बदल दिया है। हमारा जीवन एक तरफ जहां आरामतलब हो गया है वहीं ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने और अपने लिए सुविधाएं एकत्र करने की एक भौतिकवादी होड़ सी लग गई है। इसमें हमारा पारीवारिक, सामाजिक ढांचा चरमरा गया है। फ्लैट-अपार्टमेंट संस्कृति ने मनुष्य को बहुत अकेला कर दिया है। पूर्व के सभी सपोर्ट सिस्टम बिखर गए हैं और व्यक्ति परेशानियों में खुद को बेहद अकेला महसूस करने लगा है। नतीजा यह निकला है कि तनाव, उत्कंठा, रक्तचाप संबंधी विकार, अवसाद, आत्महत्या की सोच बढ़ती जा रही है।
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि सभी प्रकार के बीमारों में से लगभग 15 फीसद संख्या मनोरोगियों की होती है। स्थिति गंभीर होने पर स्वयं को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति बढ़ने लगती है। इसे रोकने के लिए मानसिक समस्याओं की पहचान, उनकी रोकथाम के उपाय बहुत जरूरी हो गए हैं।
मानसिक स्वास्थ्य क्या है
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक मानसिक स्वास्थ्य एक व्यक्ति के पूर्ण रूप से स्वस्थ होने से जुड़ा है। यदि जीवन में आने वाले छोटे-मोटे तनावों को झेलने, उत्पादकता बनाए रखने में, अपनी क्षमता का पूर्ण दोहन करने में तथा अपने परिवार एवं समाज के प्रति वांछित योगदान करने में व्यक्ति सफल होता है तो उसे पूरी तरह से स्वस्थ बताया जा सकता है।
मानसिक स्वास्थ्य किसी भी व्यक्ति के मानसिक एवं भावनात्मक तौर पर स्वस्थ होने से जुड़ा है। संतुलित सोच, युक्तिपूर्ण विचार, आत्मविश्वास इसकी कसौटी हैं। मानसिक स्वास्थ्य का आकलन इन बातों के आधार पर किया जा सकता है कि व्यक्ति की सोच कैसी है, वह प्रतिक्रिया किस तरह करता है और विभिन्न चुनौतियों का मुकाबला कैसे करता है। सामान्य मानसिक समस्याओं में डिप्रेशन, स्ट्रेस, फोबिया (भय़), भोजन संबंधी विकार आदि आते हैं। सीजोफ्रेनिया और क्लिनिकल डिप्रेशन गंभीर प्रकार के मानसिक विकार हैं।
आनुवांशिकी, जैविक एवं सामाजिक व्यक्तित्व, राजनीतिक तथा पारिवेशिक कारकों से मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। मानसिक विकार अपनी तीव्रता के आधार पर गंभीर हो सकते हैं। सामान्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में
1. मनोयोग में कठिनाई
2. खाने-पीने की आदत में परिवर्तन
3. लोगों से दूर भागना, एकांत पसंद हो जाना
4. निराशाजनक सोच जो आत्महत्या तक जाती हो
5. काम करने की इच्छा न होना, थका-थका सा रहना
6. माया-मोह की बातें करना, बंधना
7. काल्पनिक बातों में खोया रहना
8. भावनाओं पर काबू न रख पाना
9. आत्महत्या की कोशिश करना
भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति
भारत के पास परिवार, योग एवं आयुर्वेद से समृद्ध एक ऐसी संस्कृति रही है जिसमें मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं विरल थीं। पर पश्चिमी जीवनयापन के अंधानुकरण ने हमें उससे अलग कर दिया। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक भारत की आबादी का लगभग 7.5 फीसदी भाग किसी न किसी प्रकार की मानसिक समस्या से जूझ रहा है। 2019 में देश में प्रतिदिन 381 आत्महत्या की घटनाएं हुईं। 2018 के मुकाबले यह आंकड़े 3.4 फीसदी अधिक थे। स्थिति बद से बदतर होती जा रही है।
भारत विकासशील देशों के बीच राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम संचालित करने वाला पहला देश है। 1982 में हमने यह कार्यक्रम प्रारंभ किया। इसका उद्देश्य लोगों में मानसिक समस्याओं का पता लगाना तथा बड़ी संख्या में मानसिक स्वास्थ्य प्रदाताओं को तैयार करना था। 2017 में भारत मेन्टल हेल्थ केयर ऐक्ट लेकर आया। इसका उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य की समस्या से जूझ रहे लोगों के अधिकारों की सुरक्षा करना था।
मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में चुनौतियां:-
1. जागरूकता का अभाव। लोगों में जागरूकता का अभाव होने के कारण अधिकांश लोग अपनी समस्याओं को गंभीरता से नहीं लेते और इलाज से दूर रहते हैं।
2. कलंक – अनेक शोधों में पाया गया है कि भारतीय लोग अपनी मानसिक समस्याओं को इसलिए भी छिपाए रहते हैं कि इसके उजागर होने पर उनकी सामजिक स्थिति प्रभावित होगी।
3. मानसिक स्वास्थ्य प्रदाताओं का अभाव – देश में सम्प्रति प्रति एक लाख लोगों पर एक एक मानसिक रोग विशेषज्ञ उपलब्ध है।
4. फर्जी मनोवैज्ञानिक – अनेक लोग बिना किसी अध्ययन या अनुभव के मनोरोगियों का इलाज करने का दावा करते हैं और मामलों को खराब कर देते हैं।
5. बजट का अभाव – देश में मानसिक स्वास्थ्य प्रदाता ढांचा खड़ा करने के लिए बहुत कम बजट का प्रावधान है जो इसके तीव्र विकास की राह में सबसे बड़ी रुकावट है।
इलाज
मानसिक रोगियों के इलाज में औषधियों के साथ ही साइकोथेरेपी, काउंसलिंग तथा परिवार एवं समाज के सहयोग एवं समर्थन की आवश्यकता होती है। इसलिए इस क्षेत्र में जागरूकता लाने के भरपूर प्रयास होने चाहिए।











